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दिल्ली कैसे बनी भारत की राजधानी: एक रोचक इतिहास

भारत की राजधानी दिल्ली का इतिहास बेहद समृद्ध और दिलचस्प है। दिल्ली न केवल एक महानगर है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और राजनीति का केंद्र भी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिल्ली भारत की राजधानी कैसे बनी? आइए इस ऐतिहासिक यात्रा पर एक नजर डालते हैं।

प्राचीन काल से शुरुआत

दिल्ली का इतिहास महाभारत काल तक जाता है। इसे उस समय “इंद्रप्रस्थ” के नाम से जाना जाता था। पांडवों ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। समय के साथ, यह शहर कई साम्राज्यों और शासकों का केंद्र रहा, जिसमें मौर्य, गुप्त, तुगलक, खिलजी, और मुगलों का शासन शामिल है।

मुगल काल में दिल्ली

मुगल सम्राट शाहजहां ने 17वीं शताब्दी में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और इसे शाहजहानाबाद नाम दिया। लाल किला, जामा मस्जिद और चांदनी चौक जैसे मशहूर स्थान इसी काल में बने। हालांकि, औरंगजेब के बाद मुगलों का पतन शुरू हुआ और 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली पर नियंत्रण कर लिया।

ब्रिटिश काल और राजधानी का स्थानांतरण

ब्रिटिश शासन के दौरान 1858 से 1911 तक कोलकाता (तब का कलकत्ता) भारत की राजधानी थी। लेकिन कोलकाता में राजनीतिक और भौगोलिक चुनौतियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने राजधानी को स्थानांतरित करने का निर्णय लिया।

1911 में, दिल्ली दरबार के दौरान, किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाने की घोषणा की। इसका मुख्य कारण था दिल्ली का भौगोलिक और राजनीतिक रूप से केंद्रीय स्थान। यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक कड़ी का काम करता था।

नई दिल्ली का निर्माण

ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को नई राजधानी के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1927 में नई दिल्ली का निर्माण कार्य पूरा हुआ और 13 फरवरी 1931 को इसे औपचारिक रूप से भारत की राजधानी घोषित किया गया। राजपथ (अब कर्तव्य पथ), राष्ट्रपति भवन, और संसद भवन जैसी संरचनाएं इसी समय बनीं।

स्वतंत्र भारत में दिल्ली

1947 में स्वतंत्रता के बाद, दिल्ली ने एक बार फिर खुद को नई भूमिका में ढाला। यह न केवल एक राजनीतिक केंद्र बना, बल्कि यह भारत की विविध संस्कृति, कला, और विज्ञान का केंद्र भी बन गया। आज दिल्ली न केवल ऐतिहासिक धरोहरों का घर है, बल्कि यह भारत की प्रगति का प्रतीक भी है।

दिल्ली का महत्व आज

आज दिल्ली भारत का दिल मानी जाती है। यहां पर सरकार के तीन प्रमुख स्तंभ—कार्यपालिका, न्यायपालिका, और विधायिका—स्थित हैं। साथ ही, यह शहर आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक दृष्टि से भी देश का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

निष्कर्ष

दिल्ली का राजधानी बनने का सफर न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक यात्रा को भी दर्शाता है। यह शहर प्राचीनता और आधुनिकता का एक अद्भुत संगम है, जो इसे भारत का गौरव बनाता है।

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