भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी के दिन बहुला चतुर्थी मनाई जाती है।बहुला चौथ के दिन श्री कृष्ण के साथ-साथ गणेश जी की पूजा से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है। ये तिथि गणेशजी के पूजन के साथ-साथ श्री कृष्ण और गायों के पूजन के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है। कहते हैं इस व्रत को करने से व्यक्ति को धन लाभ और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
बहुला चतुर्थी को माताएं व्रत रखकर अपने पुत्रों की रक्षा के लिए कामना करती हैं। बहुला चतुर्थी के दिन गेहूं, चावल व गाय के दूध से निर्मित वस्तुएं भोजन में ग्रहण करना वर्जित है। गाय तथा शेर की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है।
बहुला चौथ तिथि :
भाद्रपद माह की चतुर्थी तिथि आरम्भ : 22 अगस्त 2024, गुरुवार, दोपहर 01:46 से
भाद्रपद माह की चतुर्थी तिथि समाप्त: 23 अगस्त 2024, शुक्रवार, प्रातः 10:38 पर
शास्त्रों में गायों का विशेष महत्व माना जाता है। गाय को माता का दर्जा प्राप्त है। जो महिलाएं गाय की पूजा करती हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है और साथ ही संतान पर आने वाली परेशानियां भी खत्म हो जाती हैं।
पौराणिक व्रत कथा :
एक ब्राह्मण था। उसके घर में बहुला नामक एक गाय थी, जिसका एक बछड़ा था। बहुला को संध्या समय में घर वापिस आने में देर हो जाती तो उसका बछड़ा व्याकुल हो उठता था। एक दिन वह घास चरते हुए अपने झुंड से बिछड़ गई और जंगल में काफ़ी दूर निकल गई।
जंगल में वह अपने घर लौटने का रास्ता खोज रही थी कि अचानक उसके सामने एक खूंखार शेर आ गया। शेर ने बहुला पर झपट्टा मारा। तब बहुला उससे विनती करने लगी कि उसका छोटा-सा बछड़ा सुबह से उसकी राह देख रहा है।
वह भूखा है और दूध मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। आप कृपया कर मुझे जाने दें। मैं उसे दूध पिलाकर वापस आ जाऊंगी, तब आप मुझे खाकर अपनी भूख को शांत कर लेना। शेर को बहुला पर विश्वास नहीं था कि वह वापस आएगी। तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ ली और सिंहराज को विश्वास दिलाया कि वह वापस जरूर आएगी।
शेर ने बहुला को उसके बछड़े के पास वापस जाने दिया। बहुला शीघ्रता से घर पहुंची। अपने बछडे़ को शीघ्रता से दूध पिलाया और उसे बहुत प्रेम किया। उसके बाद अपना वचन पूरा करने के लिए सिंहराज के समक्ष जाकर खडी़ हो गई। शेर को उसे अपने सामने देखकर बहुत हैरान हुआ।
बहुला के वचन के सामने उसने अपना सिर झुकाया और खुशी से बहुला को वापस घर जाने दिया। बहुला कुशलता से घर लौट आई और प्रसन्नता से अपने बछडे़ के साथ रहने लगी। तभी से ‘बहुला चौथ’ का यह व्रत रखने की परम्परा चली आ रही है।
ज्योतिषविदों के अनुसार इस प्रकार बहुला चतुर्थी व्रत के पालन से सभी मनोकामनाएं पूरी होने के साथ ही व्रत करने वाले मनुष्य के व्यावहारिक व मानसिक जीवन से जुड़े सभी संकट दूर हो जाते हैं। यह व्रत संतानदाता तथा धन को बढ़ाने वाला माना जाता है।