इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों में मची लूट के बीच एक शर्मनाक घटना सामने आई है। बिलासपुर के ओंकार अस्पताल प्रबंधन ने मानवता की सारी हदें पार कर दी हैं। रतनपुर क्षेत्र के भतरा पोंडी के एक युवक का 25 दिनों तक इलाज किया, लेकिन उसकी जान नहीं बचा सके।
इलाज के नाम पर परिजनों को 11 लाख रुपये का भारी-भरकम बिल थमा दिया गया और 93 हजार रुपये तत्काल जमा करने को कहा गया। रुपये न देने पर शव को पांच घंटे तक बंधक बनाकर रखा गया। पिता ने जैसे-तैसे मकान गिरवी रखकर पैसों की व्यवस्था की।
जानकारी के अनुसार 19 वर्षीय सुरेश मिर्झा, पिता नरेश मिर्झा, रतनपुर भतरा पोंड़ी निवासी, 6 जुलाई की शाम 7.30 बजे अपने दोस्तों के साथ बाइक से पाली जा रहा था। रास्ते में बाइक गड्ढे में गिर गई, जिससे उसके दोस्त की मौके पर ही मौत हो गई और सुरेश को गंभीर चोटें आईं। सुरेश को पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया, लेकिन गंभीर चोटों के कारण उसे बिलासपुर के लिए रिफर कर दिया गया।
अस्पताल में इलाज और ऑपरेशन की देरी
7 जुलाई को सुरेश को ओंकार अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उसकी हड्डी में समस्या है और 24 जुलाई को ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन के लिए परिजनों से 2.75 लाख रुपये जमा कराए गए, लेकिन ऑपरेशन नहीं हुआ और तारीखें आगे बढ़ाई जाती रहीं। परिजनों को बताया गया कि ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर छुट्टी पर हैं।
परिजनों का आरोप
परिजनों का आरोप है कि अस्पताल ने सुरेश का समय पर ऑपरेशन नहीं किया और इलाज के नाम पर केवल पैसे जमा कराते रहे। 7 जुलाई से 4 अगस्त तक इलाज के लिए 11 लाख रुपये खर्च बताये गए, लेकिन इसके बावजूद सुरेश की जान नहीं बच सकी।
शव को बंधक बनाना
सुरेश की मृत्यु के बाद, अस्पताल प्रबंधन ने परिजनों से 93 हजार रुपये तत्काल जमा करने को कहा। रुपये न देने पर सुरेश के शव को पांच घंटे तक बंधक बनाकर रखा गया। बेटे की मौत से परेशान पिता को पांच घंटे मशक्कत करनी पड़ी और अपना आशियाना गिरवी रखकर 90 हजार रुपये की व्यवस्था करनी पड़ी। जब पिता पैसे लेकर अस्पताल पहुंचे, तब जाकर उन्हें अपने बेटे का शव मिला।
इस घटना ने अस्पताल प्रबंधन की मानवता और नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इलाज के नाम पर हो रही लूट और मरीजों के प्रति इस तरह का अमानवीय व्यवहार समाज में एक गंभीर चिंता का विषय है। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से उचित कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और मरीजों को समय पर उचित इलाज मिल सके।