हलषष्ठी व्रत’ में भूलकर भी न खाएं ये चीज़ें, इस विधि से करें पूजा

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सनातन धर्म में ‘हल षष्ठी’ (Hal Shashthi 2024) व्रत का बड़ा महत्व है यह व्रत खासतौर पर सुहागन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और बुद्धिशाली होने के लिए रखती हैं।इस दिन कई चीजों का सेवन वर्जित माना जाता है।

हिंदू धर्म में हर व्रत व त्योहार का विशेष महत्व है। इन्हीं त्योहारों में एक ‘हलषष्ठी’ व्रत (Hal Shashti 2024) है। जो कि इस साल 24 अगस्त 2024 दिन शनिवार को है।

सनातन धर्म में ‘हल षष्ठी’ (Hal Shashthi 2023) व्रत का बड़ा महत्व है यह व्रत खासतौर पर सुहागन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और बुद्धिशाली होने के लिए रखती हैं। इस व्रत का विशेष महत्व होता है। हल षष्ठी के व्रत में भगवान गणेश व माता गौरी की पूजा का विशेष महत्व हैं। ऐसे में आइए जानें हल षष्ठी का महत्व और नियम के बारे में-

इस तरह के खान पान का न करें सेवन

ज्योतिषाचार्य के मुताबिक हल षष्ठी व्रत में अनाज और सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है। इस दिन भूलकर भी खेतों में जुती हुई सब्जियों व अनाज को खाने से बचें।

ऐसी मान्यता है कि हल षष्ठी का व्रत रखने वाली महिलाएं उन चीजों का सेवन करें जो तालाब व मैदान में पैदा हुई हो। जैसे- तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर ही इस व्रत को रखना चाहिए। इसके अलावा इस व्रत में गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। केवन भैंस का दूध, दही और घी का प्रयोग कर सकते हैं।

कैसे करें पूजा

हल षष्ठी की पूजा के लिए आटे से एक चौक बनाया जाता है। इसके बाद इसमें झरबेरी, पलाश की टहनी और कांस की डाल बांधकर गाड़ दी जाती है। इसके बाद षष्ठी देवी की पूजा की जाती है और उनकी पूजा में चना, गेहूं, जौ, धान, अरहर, मूंग, मक्का और महुआ का इस्तेमाल किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन खेती में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की भी पूजा की जाती हैं।

हल षष्ठी के दिन कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए। इस दिन अन्न और फल नहीं खाया जाता और न ही इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना चाहिए। इस दिन चाहें तो सिर्फ भैंस का दूध और उससे बने दही का सेवन कर सकते हैं।

धार्मिक महत्व

सनातन धर्म में ‘हल षष्ठी’ (Hal Shashthi 2024) व्रत का बड़ा महत्व है यह व्रत खासतौर पर संतान की दीर्घायु और खुशहाली के लिए रखा जाता है।

देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे ललही छठ, हर छठ, हल छठ, पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहा जाता है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हल छठ या हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और हल की पूजा के साथ बलराम की पूजा करती हैं। भगवान बलराम की कृपा से घर में सुख रहता है।

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