निजी स्कूलों में पढ़ रहे आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के साथ स्कूल अब किसी भी तरह से भेदभाव नहीं कर पाएंगे। लाइब्रेरी, स्पोर्ट्स सुविधा, कंप्यूटर कक्षाओं से लेकर सामान्य बच्चों के साथ कक्षा में नहीं बैठाने जैसी तमाम शिकायतों के चलते राज्य सरकार ने सख्ती दिखाई है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में पढ़ रहे विद्यार्थियों की कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी निगरानी करेगी।
सामान्य प्रशासन विभाग ने शुक्रवार को जिला स्तरीय टीम गठित करने का आदेश जारी किया। इस नौ सदस्यीय समिति के अध्यक्ष कलेक्टर होंगे, वहीं सदस्य के तौर पर पुलिस अधीक्षक, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, नगर निगम के आयुक्त, अनुसूचित जाति-जनजाति विकास विभाग के सहायक आयुक्त, मिशन संचालक, जिला समन्वयक, जिला शिक्षा अधिकारी, एक प्राचार्य और एक अभिभावक को शामिल किया जाएगा।
कमेटी को छह बिंदुओं पर काम करना होगा। आरटीई के तहत विद्यार्थियों की शिक्षा पूरी होने तक उन्हें विद्यालयों में बनाए रखने के लिए सतत प्रयास करेगी विद्यार्थियों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव न हो, यह सुनिश्चित किया जाएगा जिलों में संचालित सभी गैर अनुदान प्राप्त निजी स्कूल आरटीई पोर्टल पर पंजीकृत होंगे।
विद्यार्थियों को किताबें, यूनिफार्म, लेखन सामग्री निश्शुल्क उपब्लध कराने का काम करेगी। विद्यालयों के सघन निरीक्षण का तंत्र विकसित किया जाएगा। यह है योजना गरीब व वंचित परिवारों के विद्यार्थियों को भी मध्यमवर्गीय संपन्न घरों के बच्चों की तरह अच्छी शिक्षा मिल सके, इसे लेकर एक अप्रैल 2010 को प्रदेश में आरटीई लागू हुआ।
इसके तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर दी गई। इस अधिनियम के तहत छह से 14 साल तक के बच्चों की फीस सरकार प्रतिपूर्ति के तौर पर निजी स्कूल प्रबंधनों को देती है। प्राइमरी स्कूल में 7 हजार रुपये प्रति विद्यार्थी और मिडिल स्कूल में 11 हजार रुपये प्रति विद्यार्थी शुल्क की प्रतिपूर्ति राज्य सरकार करती है।