लाहौर/नई दिल्ली– पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय सरबजीत सिंह की हत्या के आरोपी अमीर सरफराज तांबा की रविवार को लाहौर में अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के करीबी सहयोगी तांबा पर मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने लाहौर के इस्लामपुरा इलाके में हमला किया। उसे नाजुक हालत में एक अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।
सरबजीत सिंह भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे तरनतारन जिले के भिखीविंड गांव के रहने वाले थे। वे किसान थे। उनके परिवार में पत्नी सुखप्रीत कौर के अलावा दो बेटियां स्वप्नदीप और पूनम कौर थीं। सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने 1991 से 2013 में उनकी मृत्यु तक उनकी रिहाई के लिए लगातार पैरवी की थी। 30 अगस्त 1990 को वह अनजाने में पाकिस्तानी सीमा में पहुंच गए थे, जहां से उन्हें पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया था।
सरबजीत सिंह को 1990 में पाकिस्तान में कई बम विस्फोटों में कथित तौर पर शामिल होने का दोषी करार दिया गया था। इसके लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, भारत में सरबजीत सिंह के परिवार का कहना है कि वह गलत पहचान का शिकार हुए और अनजाने में सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गए थे।
किस मामले में और कब सुनाई गई सजा?
साल 1991 में पाकिस्तान की कोर्ट ने सरबजीत सिंह को लाहौर और फैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी। इन धमाकों में करीब 10 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, कई बार सरबजीत सिंह की सजा को अस्थायी तौर पर टाला भी गया था। मार्च 2006 में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने सरबजीत की दया याचिका खारिज करते हुए उन्हें सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा था।
कैसी गई थी जान?
26 अप्रैल 2013 को कड़ी सुरक्षा वाली कोट लखपत जेल के अंदर तांबा सहित अन्य कैदियों ने सरबजीत पर बर्बर हमले किए। उन पर ईंट और लोहे की छड़ों से वार किए गए। इसके बाद उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाया गया। कुछ दिनों बाद सरबजीत सिंह (49) की दो मई 2013 की सुबह लाहौर के जिन्ना अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी। हमले के बाद करीब एक हफ्ते तक वे अचेत रहे थे।