खुद को महिला बताकर ट्रांसजेंडर ने रचा ली शादी, धोखा खाए युवक ने अलग होना चाहा तो मांगा भरण-पोषण खर्च

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ग्वालियर– ग्वालियर का युवक। पूरे परिवार ने इकलौते बेटे की शादी धूमधाम से की, नई बहू के स्वागत में पूरा परिवार जुट गया। कई दिन बीत गए, लेकिन फिर भी वह पति के साथ पत्नी की तरह नहीं रह पा रही थी। पत्‍नी दूसरे कमरे में रहने की जिद करती थी। जब डाक्टर से जांच करवाई, तब हकीकत सामने आई। असल में जिसे महिला बताकर युवक से शादी करवाई, वह महिला नहीं ट्रांसजेंडर थी। तब युवक ने अलग होने की बात कही तो महिला और उसके परिवार वालों ने भरण-पोषण मांगा, जबकि एक दिन भी पति-पत्नी की तरह नहीं रहे। तब युवक को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी ली और केस लड़ा। सात साल तक संघर्ष किया और आखिर कोर्ट ने विवाह शून्य घोषित कर दिया। युवक के साथ धोखा किया गया था, इसके बाद भी भरण पोषण की मांग की गई।

इस केस के बारे में बताते हुए एडवोकेट पुरुषोत्तम शर्मा कहते हैं- इस मामले में पूर्व में जो अधिवक्ता केस लड़ रहे थे, उन्हीं ने विवाह शून्य करवाने की जगह तलाक का केस लगा दिया था। जबकि युवक के साथ धोखा हुआ था।

जीवन बर्बाद हो रहा था, पूरा परिवार मानसिक परेशानी से जूझ रहा था 

एडवोकेट पुरुषोत्तम शर्मा ने बताया कि 1 जुलाई 2014 को युवक की शादी हुई थी। जिससे शादी हुई थी, वह दिखने में बिलकुल महिला लगती थी। वह भिंड की रहने वाली थी। शादी के करीब एक साल तक वह पति से अलग रही। उसका मेडिकल परीक्षण करवाया गया तब सामने आया, वह ट्रांसजेंडर है। उसका प्रायवेट पार्ट आपरेट करवाया गया है। यह सबकुछ उस महिला और उसके परिवार वालों ने छिपाया। जब यह सामने आया तो 8 मार्च 2016 को वकील से युवक के परिवार वाले मिले। वकील ने तलाक का केस लगा दिया।

मांगा था भरण पोषण

महिला ने भरण पोषण की मांग की। ऐसे में सवाल था, जब उसका पुरुष से विवाह हो नहीं सकता न ही वह विवाह करने योग्य है। परिवार को गुमराह कर शादी की गई। जब भरण पोषण मांगा गया तो पूरा परिवार परेशान हो गया। युवक न तो दूसरी शादी कर पा रहा था न ही पहली शादी के बाद वह पति की तरह रह पा रहा था। पूरा परिवार मानसिक परेशानी से जूझ रहा था।

केस ही गलत लगाया

यह मामला जब एडवोकेट पुरुषोतम शर्मा के पास आया, तब उन्होंने बताया- यह केस ही गलत लगाया गया है। यह मामला तलाक नहीं बल्कि विवाह शून्य करवाने का होना चाहिए। कुटुंब न्यायालय में उन्होंने विवाह शून्य करने के लिए 11 नवंबर 2016 में गुहार लगाई। इसके बाद सात साल तक न्याय के लिए संघर्ष किया। आखिर न्याय मिला और कोर्ट ने विवाह शून्य घोषित कर दिया।

शादी में धोखा…यानि शादी ही नहीं

अधिवक्ता पुरुषोत्तम शर्मा ने बताया कि इस तरह का मामला जब कोर्ट के समक्ष पहुंचा तो कोर्ट ने कमेंट किया- यह विवाह ही नहीं है। शादी में एक पक्ष ने अपनी पहचान छिपाकर शादी की, विवाह के बाद दोनों पति-पत्नी की तरह रहे ही नहीं, इनके बीच संबंध ही स्थापित नहीं हो सके इसलिए यह विवाह है ही नहीं। इसलिए जब विवाह नहीं तो तलाक कैसा और भरण पोषण क्यों, आखिर कोर्ट ने विवाह शून्य घोषित कर दिया।

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