सनातन धर्म के अनुसार, सतयुग, जिसे कृतयुग भी कहा जाता है, चार युगों में पहला और सबसे पवित्र युग है। यह युग धार्मिकता, सत्य, और नैतिकता का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार, सतयुग की अवधि लगभग 17,28,000 वर्ष मानी जाती है।
युगों की गणना का आधार
सनातन धर्म में एक चतुर्युग (चार युगों का चक्र) की अवधि 43,20,000 वर्षों की होती है। यह चार युगों में विभाजित है:
1. सतयुग – 17,28,000 वर्ष
2. त्रेतायुग – 12,96,000 वर्ष
3. द्वापरयुग – 8,64,000 वर्ष
4. कलियुग – 4,32,000 वर्ष
इन युगों की अवधि घटते क्रम में है, और इन्हें धर्म (सत्य) के चार पायों से जोड़ा गया है। सतयुग में धर्म अपने पूर्ण स्वरूप (चार पायों) में होता है, जो धीरे-धीरे त्रेता, द्वापर, और फिर कलियुग में एक-एक करके घटता जाता है।
सतयुग की विशेषताएँ
1. धर्म का पूर्ण पालन: इस युग में सभी लोग सत्यवादी, धार्मिक, और नैतिक होते थे। किसी प्रकार का पाप या अधर्म नहीं होता था।
2. शारीरिक और मानसिक शक्ति: मनुष्य का जीवनकाल लाखों वर्षों का होता था। शरीर शक्तिशाली और रोगमुक्त रहता था।
3. आध्यात्मिक उन्नति: सभी लोग ध्यान, तप, और योग के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का प्रयास करते थे।
4. सत्य और अहिंसा का वर्चस्व: पृथ्वी पर पूर्ण शांति और सुख-समृद्धि का माहौल था।
सतयुग को मानवता का स्वर्णिम युग माना जाता है, और इसे धरती पर ईश्वर की उपस्थिति का समय भी कहा गया है।