गरियाबंद- छत्तीसगढ़ की तीर्थ नगरी राजिम में तीन नदियों पैरी, सोढ़ूर और महानदी के संगम होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाता है। त्रिवेणी संगम के मध्य में भगवान भोलेनाथ का विशाल मंदिर स्थित है, जो कुलेश्वनाथ महादेव के नाम से ख्याति प्राप्त है। किवदंती के अनुसार वनवास काल के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण, माता सीता के साथ यहीं पर स्थित लोमष ऋषि के आश्रम में कुछ दिन गुजारे थे। उसी दौरान माता सीता ने नदी की रेत से भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की थी। तभी से इस शिवलिंग को कुलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
इस खुरदुरे शिवलिंग को माता सीता ने अपने हाथों से बनाया था, जिसके निशान होने की बात जनमानस में प्रचलित है। वर्तमान में यह शिवलिंग क्षरण के कारण अपना मूल स्वरूप शनैः शनै खोता जा रहा है, इसलिए शिवलिंग की सुरक्षा के लिए उपाय किए गए है, ताकि शिव भक्तों द्वारा पूजा अर्चना में उपयोग किए जाने वाले वस्तुओं से शिवलिंग की सुरक्षा की जा सकें।
भगवान कुलेश्वनाथ को लेकर मान्यता है कि बरसात के दिनों में कितनी भी बाढ़ आ जाए। यह मंदिर डूबता नहीं है। कहा जाता है बाढ़ से घिर जाने के बाद नदी के दूसरे किनारे पर बने मामा-भांचा मंदिर को गुहार लगाते हैं कि मामा मैं डूब रहा हूं मुझे बचा लो। तब बाढ़ का पानी कुलेश्वरनाथ महादेव के चरण पखारने के बाद स्वतः कम होने लगाता है। आज भी इस मान्यता को क्षेत्र के लोग श्रद्धा से स्वीकारते हैं।
कहा तो यह भी जाता है कि राजिम के स्वर्ण तीर्थ घाट के समीप बने संत कवि स्व. पवन दीवान के आश्रम में स्थित प्राचीन सोमेश्वर महादेव का मंदिर जिसमें एक गुफा भी है जिसमें काली माता की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर से एक सुरंग, सीधे कुलेश्वरनाथ मंदिर तक पहुंचती है। संभवत बरसात के दिनों में पुजारी इसी सुरंग से होकर भगवान कुलेश्वर नाथ की पूजा अर्चना के लिए जाया करते होंगे। वर्तमान में ये सुरंग पूरी तरह से बंद हो चुका है।