त्योहार एक नाम अनेक: मकर संक्रांति

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त्योहार एक नाम अनेक: मकर संक्रांति

14 जनवरी का दिन भारत में विभिन्न संस्कृतियों और क्षेत्रों में विशेष उत्साह और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के उत्तरायण होने का प्रतीक है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसे अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है, लेकिन भावना एक ही रहती है – नई शुरुआत, उत्साह और सामाजिक एकता का जश्न।

मकर संक्रांति के विभिन्न नाम-

1. उत्तर भारत:

उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में इसे मकर संक्रांति कहते हैं। यहाँ इस दिन खिचड़ी बनाने और तिल-गुड़ खाने की परंपरा है। इसलिए इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है।

2. पंजाब:

यहाँ इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है। लोग अलाव जलाकर गाने गाते हैं और रेवड़ी, मूंगफली और गजक बांटते हैं।

3. गुजरात:

गुजरात में यह पर्व उत्तरायण कहलाता है। इस अवसर पर पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं होती हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं।

4. महाराष्ट्र:

महाराष्ट्र में लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ देकर कहते हैं – “तिलगुल घ्या आणि गोड गोड बोला”।

5. तमिलनाडु:

यहाँ यह पर्व पोंगल के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है। यह मुख्यतः किसानों का त्योहार है, जिसमें नई फसल की पूजा की जाती है।

6. असम:

असम में इसे भोगाली बिहू कहा जाता है, जो फसल कटाई के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

मकर संक्रांति न केवल सूर्य उपासना का पर्व है बल्कि यह सामाजिक समरसता, दान और धर्म के प्रति श्रद्धा का प्रतीक भी है। तिल और गुड़ जैसे खाद्य पदार्थ सर्दी के मौसम में शरीर को गर्म रखते हैं और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है।

समाज और उत्सव की भावना

मकर संक्रांति हमें यह संदेश देता है कि जैसे सूर्य उत्तरायण होकर अंधकार को दूर करता है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में नई रोशनी और सकारात्मकता का स्वागत करना चाहिए।

इस तरह यह त्योहार एकता, भाईचारे और भारतीय संस्कृति की विविधता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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