रक्षाबंधन का पर्व भाई और बहन के बीच के अटूट प्रेम और स्नेह को दर्शाता है। रक्षाबंधन के दिन बहनें पूजा-अर्चना करके भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। पर्व पर कुछ भाई बहनों की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने एक-दूसरे की कमियों को नजरअंदाज करते एक-दूसरे के जीवन को बेहतर बनाने साथ दे रहे हैं।
शुभम आगिचाई को जब एक किडनी की आवश्यकता थी तो बहन सुरभि ने अपना एक किडनी अपने भाई को दान कर दिया। मूकबधिर भाई आलोक का जीवन बेहतर बनाने बहन ने भी रायपुर में अपनी गृहस्थी बसा ली। वहीं भाई-बहन की जोड़ी अंजलि देशपांडे और पार्थ सारथी देशपांडे दिव्यांग बच्चों की देशभाल कर रहे हैं।
भाई के जीवन को दी नई दिशा
रायपुर की अंजलि देशपांडे (35 वर्ष) और पार्थ सारथी देशपांडे के बीच भाई-बहन के प्रेम की मिसाल पेश कर रहे हैं। सारथी देशपांडे सीखने में अधिक समय लेता है, लेकिन अपने भाई को बखूब ध्यान रखती है। पार्थ को बचपन से खाने बनाने का शौक था तो परिवार वालों ने भाई का टिफिन सर्विस शुरू करवाया। कोपण वाणी में भाई और बहन दिव्यांग बच्चों की देखभाल करते हैं। दोनों के बीच आपसी सहयोग और स्नेह की भावना है।
बहन ने भाई को दे दी किडनी
सुरभि आगिचाई (30 वर्ष) और शुभम आगिचाई (28 वर्ष) ने भाई बहन के बीच त्याग की मिशाल पेश की है। सुरभि बताती हैं कि भाई के लिवर में इंफेक्शन के कारण शरीर में कुछ परिवर्तन दिखने लगा। जब रायपुर के अस्पताल में डाक्टर से परीक्षण करवाया तो कीडनी बदलने की बात सालह दी।
इसके बाद मैं और सबसे छोटे भाई संस्कार (20 वर्ष) किडनी मैच कराने पहुंचे। मेरा किडनी भाई के किडनी के साथ मैच हो गया। इसके बाद 4 अगस्त को चेन्नई में सफल आपरेशन हुआ। शुरुआत में घरवाले मेरे फैसले से खुश नहीं थे, लेकिन बाद में उन्हाेंने इसका स्वागत किया।
भाई बहन में सर्मपण का के गुण को आलोक जैसवाल और रानी जैसवाल की जोड़ी बताती है। मूलत: गरियाबंद जिले के रहने वाले आलोक मूकबधिर है। इसके कारण उनकों पढ़ाई और नौकरी के लिए कई समस्या झेलनी पड़ी। लेकिन बहन रानी ने अपने भाई का बखूबी साथ दिया।
कोपल वाणी से 12वीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आलोक ने कंप्यूटर शिक्षा ली और रायपुर में ही निजी संस्थान में नौकरी करने लगे। अपने भाई को कुछ समस्या न हो इसके लिए बहन अपने भाई के साथ रायपुर में घर बसा ली। भाई-बहन के बीच अटूट स्नेह है।