हलषष्ठी: बाजार में उत्साह, सगरी में आज पूजा-अर्चना

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बिलासपुर- कमरछठ (हलषष्ठी) का पर्व शनिवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन बलराम जी की पूजा की जाती है। कहते हैं जो महिलाएं सच्चे मन से ये व्रत रखती हैं उनकी संतान को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। न्यायधानी में वर्षों से इस पर्व को पारंपरिक तरीके से माताएं उत्साह से मनाती है।

पूजा में पसहर चावल, भैंस का दूध, दही, घी, बेल पत्ती, कांशी, खमार, बांटी, भौरा सहित अन्य सामग्रियों का उपयोग होता है। पूजन पश्चात माताएं घर पर बिना हल के जुते अनाज पसहर चावल, छह प्रकार की भाजी को पकाकर प्रसाद के रूप में वितरण कर अपना व्रत पारण करती हैं। यही कारण है कि दिनभर बाजार में खरीदारी के लिए चहल पहल रही।

शिव मंदिर के पुजारी पं.वासुदेव शर्मा का कहना है कि हलषष्ठी पर्व से संबंधित कथा वाचन एवं श्रवण किया जाता है। पर्व पर महिलाएं एकत्र होकर एक साथ पूजा अर्चना करेंगी। इस पर्व पर उपवास तोडकर खास अन्न ””पसहर चावल”” का सेवन करेंगी। अंचल में इस पर्व को बड़े भक्तिभाव और उत्साह से मनाया जाता है। इस साल यह पर्व शनिवार और रविवार दो दिन मनाया जाएगा।

भैंस के दूध की मांग भी ज्यादा
पर्व के दिन भैंस के दूध की मांग भी ज्यादा होती है। लिहाजा लोगों ने पहले ही हाता डेयरी और होटलों में दूध का आर्डर दे दिया है। शाम को महिलाएं पसहर चावल, महुआ और छह प्रकार की भाजियों से अपना व्रत तोड़ेंगी। व्रत तोड़ने में जिन खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल होता है उनका अपना वैज्ञानिक महत्व है। महुआ जहां औषधीय गुणों से युक्त होता है।
माताएं करेंगी सुबह दातून
कमरछठ को हलषष्ठी, हलछठ या खमरछठ के नाम से भी जाना जाता है। माताएं सुबह महुआ पेड़ की डाली से दातून करें और व्रत का संकल्प लेंगे। पंड़ित वासुदेव का यह भी कहना है कि कोशिश करें कि घर में सगरी बनाएं। इसके लिए घर के आंगन में अगर-बगल दो गड्ढे खोदें। इसे बेर, पलाश, गूलर की टहनियों, काशी आदि फूलों से सजाएं। इसके सामने मिट्टी के खिलौने, शिवलिंग, गौरी-गणेश हल-षष्ठी माता की स्थापना करें।

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