1,000 करोड़ के घोटाले की हाईकोर्ट में फाइनल हियरिंग, कई वरिष्ठ अफसरों पर आरोप

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बिलासपुर– छत्तीसगढ़ के राज्य स्रोत नि:शक्तजन संस्थान (एसआरसी) के नाम पर हुए कथित 1,000 करोड़ रुपये के घोटाले का मामला एक बार फिर चर्चा में है। इस मामले में राज्य के लगभग एक दर्जन आईएएस और राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों पर गंभीर आरोप हैं। रायपुर निवासी कुंदन सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) में इस घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की गई थी। अब छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में इस मामले की अंतिम सुनवाई चल रही है, और कोर्ट ने कई वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया है।

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती और सीबीआई जांच पर रोक

जब हाई कोर्ट ने इस घोटाले की सीबीआई जांच का आदेश दिया था, तो उस समय के ताकतवर नौकरशाहों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगा दी, लेकिन हाई कोर्ट को पूरे मामले की सुनवाई का अधिकार दिया। तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश के चलते रुका हुआ था, लेकिन अब एक बार फिर से हाई कोर्ट में इसकी फाइनल हियरिंग चल रही है।

1,000 करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा

जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि 2004 से 2018 के बीच, राज्य के कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों और राज्य सेवा के अधिकारियों ने एसआरसी के नाम पर फर्जीवाड़ा किया। याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने आरोप लगाया है कि अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 630 करोड़ रुपये से अधिक का गबन किया। इस मामले में आरोपियों में 6 वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शामिल हैं, जिनमें आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती का नाम प्रमुख है। इसके साथ ही राज्य सेवा के अफसरों में राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडे और पंकज वर्मा के नाम भी शामिल हैं।

बैंक खातों के जरिए फर्जीवाड़ा

आरोप है कि समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत संचालित एसआरसी के नाम पर कई फर्जी बैंक खाते खोले गए। इन खातों में फर्जी आधार कार्ड का इस्तेमाल कर विभिन्न कर्मचारियों के नाम से वेतन आहरण किया गया। हाई कोर्ट की जांच में यह भी सामने आया कि ऐसी कोई संस्था अस्तित्व में ही नहीं थी और सिर्फ कागजों में इसका संचालन दिखाया जा रहा था।

हाई कोर्ट के निर्देश

हाई कोर्ट ने पहले ही सीबीआई को इस मामले की जांच के लिए एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे। डिवीजन बेंच ने सीबीआई को निर्देश दिया था कि वह समाज कल्याण विभाग से सभी प्रमुख दस्तावेजों को जब्त करे और स्वतंत्र जांच के तहत पूरे मामले की निगरानी हाई कोर्ट करेगा।

तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी की रिपोर्ट

तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी अजय सिंह ने भी जांच के बाद 200 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा किया था। हाई कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए इसे “गड़बड़ी” नहीं, बल्कि “संगठित अपराध” करार दिया था।

अब इस घोटाले से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों को कोर्ट में जवाब पेश करने के लिए तलब किया गया है, और हाई कोर्ट की फाइनल हियरिंग के बाद इस मामले में बड़ा फैसला आने की उम्मीद है।

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