बदनावर– मसालों की प्रमुख फसल लहसुन इन दिनों सर्वत्र चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है। भाव में आसमानी तेजी के कारण लहसुन चोरी की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। इस कारण किसान 24 घंटे खेतों की निगरानी करने में लगे हुए हैं। कुछ किसानों ने पालतू श्वनों से लेकर सीसीटीवी कैमरों का सहारा ले रखा है। खेतों पर सीसीटीवी लगाकर मोबाइल से उनका कनेक्शन जोड़ रखा है। ऐसे में वे चाहे घर हो बाहर, हरदम लहसुन की निगरानी कर रहे हैं। जबकि खुद किसान भी 24 घंटे बारी-बारी से निगरानी कर रहे हैं। इसके लिए बकायदा बंदूकधारी चौकीदार भी रखे गए हैं।
जानकारों के मुताबिक आज तक लहसुन का भाव शुरुआती दौर में कभी ऊपर नहीं गया है। यह पहला मौका है जब शुरुआती दौर में ही मंडियों में लहसुन 60 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पूर्व में बिक चुकी है। जबकि वर्तमान में अच्छी गुणवत्ता वाली लहसुन ऊंटी किस्म की भी 25 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक बिक रही है। जबकि अधपकी लहसुन 12 से 14 हजार प्रति क्विंटल बिक रही है।
स्टाकिस्ट भी नई और बोल्ड लहसुन के इंतजार में है। सूखी और लड्डू किस्म की लहसुन स्टाक के लिए सर्वोतम होती है। हालांकि पिछले दो दशक का यह सर्वोच्च भाव रहा है। इससे पूर्व वर्ष 2013 में लहसुन प्रति क्विंटल भाव में बिक चुकी थी, लेकिन वो सूखी तथा उच्च क्वालिटी की रही थी।
नीमच व मंदसौर जिले के बाद लहसुन की सर्वाधिक पैदावार बदनावर, बड़नगर व रतलाम क्षेत्र में होती है। इसके भाव में तूफानी तेजी होने के कारण कई किसानों ने पकने से पहले अधपकी लहसुन बेच दी। आंशिक मंदी के बाद भाव में फिर से तेजी आ रही है। इस कारण पकी हुई लहसुन किसान एकत्रित कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक 25 से 30 प्रतिशत लहसुन ही मार्केट में आई है। जबकि जो लहसुन अब पक रही है, वो किसान संग्रहित करते जा रहे हैं। लगभग 70 प्रतिशत नई लहसुन अभी भी खेतों में या गोदामों में रखी हुई है।
किसानों को उम्मीद है कि नई और सूखी लहसुन होने के बाद पर्याप्त तेजी रहेगी, क्योंकि इस बार कोहरे और मौसम की मार के कारण उत्पादन 50 से 60 प्रतिशत ही रहा है। जो लहसुन एक बीघा की 25 से 30 क्विंटल तक बैठती थी, वो 12 से 15 क्विंटल ही बैठ रही है। इससे मांग और आपूर्ति के सिद्धांत के अनुसार लहसुन की कमी रहेगी। इस कारण सक्षम किसान ग्रेडिंग कर स्टाक कर रहे हैं। वैसे भी इस बार कोहरे से प्रभावित होने से लहसुन का उत्पादन कम आया है, रकबा भी कम था। इसलिए आने वाले दिनों में इसके भाव में मंदी की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है।
सभी देशों की पसंदीदा मालवा की लहसुन
मालवा की लहसुन बांग्लादेश, भूटान सहित अरब के लगभग सभी देशों में पसंद की जाती है। निर्यात सुगम होने से किसानों को लगभग दोगुना से अधिक भाव प्राप्त हो रहे हैं, किंतु यह माल अभी बाजार में आना प्रारंभ नहीं हुआ है। स्टाकिस्टों की नजर भी इसी माल पर है। जैसे ही यह वैरायटी बाजार में आई, लहसुन के भाव में पांच से 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल की तेजी संभावित है।
हालांकि ऊंटी वैरायटी की लहसुन मार्केट में धड़ल्ले से आ चुकी है। इसका गांठिया बड़ा व कली भी बड़ी होती है, जिससे यह आम लहसुन की तुलना में पांच से 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल देशी के बजाय अधिक भाव में बिक जाती है। क्षेत्र में भी कई किसानों ने इस प्रजाति की लहसुन बो रखी है। इसका बीज भी महंगा होता है तथा उत्पादन खर्च भी अधिक बैठता है। यह मुख्यतः दक्षिण भारत से मंगवाई जाती है।
महंगी बिकती है रियावन लहसुन
इसके बाद रियावन वन किस्म की लहसुन महंगी बिकती है, क्योंकि इसमें 16 पर्दे होते हैं। जिस लहसुन में जितने ज्यादा छिलके होते हैं, संचय में वो उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। अधिक पर्दे वाली लहसुन वर्षभर तक अपनी नमी नहीं खोती है। इस कारण स्टाक के लिए यह सर्वोतम मानी जाती है।
मार्च अंत तक बाजार आ जाएगी पूरी लहसुन
लहसुन का प्रति बीघा खर्च बीज और बुवाई से लेकर कटाई और मंडी पहुंचने तक 30 से 40 हजार रुपये प्रति बीघा तक बैठता है। सर्वाधिक दाम बीज के ही रहते हैं। एक बीघा में डेढ़ से दो क्विंटल लहसुन चौपी जाती है। मजदूरों के अभाव में आजकल ट्रैक्टर से इसकी बुआई कर दी जाती है। ट्रैक्टर में बुवाई में बीज थोड़ा ज्यादा पड़ता है। इस प्रकार लगभग 15 से 20 हजार रुपये तो बीज का ही खर्च आता है, उसके बाद लगभग 15 से 20 हजार रुपये खर्च मंडी तक पहुंचने का हो जाता है।
लहसुन की प्रोसेसिंग
लहसुन निकालने के बाद उसे सप्ताह भर खेतों में ही सूखाया जाता है। लहसुन के फूड प्रोसेसिंग प्लांट शुरू होने से इसका पेस्ट भी तैयार किया जा रहा है। यही कारण ही इन दिनों लहसुन की आवक से मंडियां गुलजार हैं। मार्च माह के अंत तक लगभग संपूर्ण लहसुन बाजार में आ जाएगी, जो सूखी होगी। किसानों को उम्मीद है तब भी उन्हें उच्च भाव प्राप्त होंगे।